JAS Foundation

सेवा परमों धर्मः

JAS Foundation

सेवा परमों धर्मः

नमस्कार साथियों, मैं हूँ पंकज आपका युवा साथी। जन अभ्युदय सेवा फाउंडेशन परिवार में आपका हार्दिक स्वागत है। साथियों आज मैं कुछ बहुत जरूरी बातें आपसे कहना चाहता हूँ, मुझे यकीन है आप सभी बहुत ही ध्यान से इस लेख को पढ़ेंगे।

दोस्तों पिछले 3 सालों में मैं हजारों युवाओं से बातचीत किया, और कल भी मैं कुछ युवाओं से वार्तालाप कर के घर आया और उसके बाद मुझे लगा कि जो मेरा अनुभव है उसे आपके साथ साझा करना चाहिए।

हमारे देश की जनसंख्या विश्व मे सबसे ज़्यादा है साथ ही युवाओं की संख्या भी भारत मे सबसे ज़्यादा है। लेकिन जितनी युवा शक्ति है उसमें से बहुत कम अनुपात में हम अपने प्यारे भारत देश को आगे बढ़ाने में लगे हुए हैं। इसका कारण क्या है? लोग कहाँ लगे हुए हैं फिर? चलिए समझते हैं इसी बात को और इसके समाधान के बारे में भी बात करूंगा।

सार्थक लक्ष्य का ना होना –

साथियों पहली और सबसे महत्वपूर्ण बात मैं देखता हूँ कि ज़्यादातर युवाओं के पास सार्थक और बड़े लक्ष्य नहीं है जिसके कारण युवा अपना ज़्यादातर समय, ऊर्जा या तो सोने या सोशल मीडिया या बेकार की बातों में लगातें हैं जिससे उनके जीवन में सार्थकता नहीं आ पाती। साथियों हमको ये समझना पड़ेगा कि यह हमारा जीवन है और इसको बेहतर बनाने के लिए हमें ही प्रयास करना पड़ेगा।

हमें सार्थक और बड़े लक्ष्य बनाने पड़ेंगे, हम क्या पाना चाहते हैं उसको व्यवस्थित लिखना भी होगा कि ये कब तक और क्यों हासिल करना है, साथ ही इस लक्ष्य को हकीकत में बदलने के लिए आवश्यक योजना बनाकर उसपर हर-हाल में चलना पड़ेगा। यदि इस लक्ष्य को पाने के लिए उचित कौशल या क्षमता नहीं है तो उसे विकसित करना पड़ेगा। और हमें ये अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि इस दुनिया में बिना कुछ दिए कुछ भी नहीं मिलता, चाहे अर्थव्यवस्था हो या जिंदगी कीमत तो चुकानी पड़ेगी किसी न किसी रूप में। बहाने बनाने वालों या अपनी कमजोरी का प्रदर्शन करने वालों को दुनिया कभी इनाम नहीं देती।

महत्वाकांक्षा की कमी –

मैं देखता हूँ कि युवा बहुत जल्दी और बहुत कम में संतुष्ट हो जा रहें हैं, एक हद तक सेटल हो जाने के बाद आगे बढ़ने और कुछ नया करने का प्रयास छोड़ देते हैं, उनमें महत्वाकांक्षा की कमी दिखाई पड़ती हैं। इसी वजह से हम अपने सम्पूर्ण क्षमता और कौशल का उपयोग नहीं कर पाते। मुझे लगता है की इसका मुख्य वजह है की हम अपने परिवार का दायरा बहुत छोटा बना के रखें है और इस वजह से जब घरेलू जिम्मेदारी पूरी हो जाती है तो हम बेफिक्र हो जाते हैं की बस; अब ज़्यादा नहीं चाहिए। हम समाज की जिम्मेदारियों को भूल जातें हैं और उनके लिए जो हमें जिम्मेदारी उठानी चाहिए उनसे हम बचने की कोशिश करते हैं।

साथियों अगर हमें अपने देश को खुशहाल और समृद्ध बनाना है तो सामाजिक जिम्मेदारियां जितनी हो सके उतनी उठाइए। ज़्यादा से ज़्यादा हासिल करने की कोशिश कीजिए। एक लक्ष्य पूरा होने पर दूसरा और बड़ा लक्ष्य बनाइये, अपने आप को चुनौती देते रहिए, नए से नया कीर्तिमान रचने का प्रयास कीजिए, अपने क्षमताओं का सम्पूर्ण उपयोग करने का प्रयास कीजिए।

सही संगत का अभाव –

ज़्यादातर मैं यही देखता हूँ की हमारी संगति हमें ऊँचा उठाने की बजाय हमें और नीचे गिराने वाली होती है। मजेदार बात ये है की हम चुनाव करने के लिए स्वतंत्र होते हैं फिर भी गलत चुनाव कर लेते हैं। कई बार तो ये चुनाव नासमझी में होता है लेकिन अधिकांशतः हम जान-बूझकर गलत संगत का चुनाव करतें हैं और अचरज की बात ये है कि इसका परिणाम भी हमें पता होता है। साथियों संगति में दोस्त, परिवार की बात तो होगी ही साथ में किताबें, वीडियो, मूवीज आदि भी इसमें शामिल होंगे जो किसी न किसी तरह हमारे साथ संपर्क में रहते हैं और हमें प्रभावित करतें हैं।

हमें सही संगति करना सीखना ही होगा, सामान्यतः हम महान लोगों या अपने क्षेत्र के दिग्गज लोगों तक आसानी से नहीं पहुँच सकते, लेकिन कई तरीके से उनसे संगति कर सकते हैं जैसे उनकी पुस्तकें, लेख आदि को हम पढ़ सकते हैं, उनके वीडियोज़ देख सकते हैं और भी बहुत कुछ किया जा सकता है। महत्वपूर्ण बात यह है की जैसी हमारी संगति होगी वैसे ही हम भी बन जाते हैं। विरले ही होते हैं जो कीचड़ में भी कमल की तरह खिल जाते हैं। इसके लिए हमें मानसिक रूप से बहुत मजबूत बनना होगा। इमर्सन, जो की दर्शनशास्त्री थे, वो कहा करते थे की ” अगर मुझे नर्क में भी भेज दोगे तब भी मैं अपने लिए वहाँ स्वर्ग बना लूँगा।” ये बात बोलने में तो आसान है लेकिन बहुत दम चाहिए हकीकत में बदलने लिए, हालांकि असंभव नहीं है, कोशिश की जाए तो मुमकिन है।

नेतृत्व करने से पीछे हटना –

कई बार मैं देखता हूँ की हम सुरक्षित माहौल के इतने आदी हो जाते हैं की रिस्क लेने से दूर भागने लगते हैं, सही कार्यों के लिए कदम बढ़ाने से डरते हैं, बदलाव के लिए नेतृत्व करने से बचने लगते हैं, हमारी यह आदत हमारे देश को बहुत आगे बढ़ने से रोक रही है। हमें हर क्षेत्र जो देश की प्रगति में सहायक है उसमें आगे आकर नेतृत्व करना होगा, सिर्फ़ समस्या गिनाने से समाधान नहीं होगा हमें समस्या का समाधान करने वाला बनना पड़ेगा, यही समय की मांग है।

साथियों शुरुआत में बहुत चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा, तूफान गिराने की बहुत कोशिश करेंगे लेकिन हमें डटे रहना होगा क्योंकि ये सिर्फ मेरा-आपका सवाल नहीं है, ये लाखों-करोड़ों लोगों की बात हैं। शुरुआत छोटी हो सकती है, शुरू में में लोग आपको हतोत्साहित करने की बहुत कोशिशें करेंगे लेकिन आपका विज़न अगर स्पष्ट होगा, आपके अंदर दृढ़ता होगी परिवर्तन लाने की तो जरूर एक दिन समय बदलेगा, परिस्थितियाँ बदलेंगी और परिणाम सबके सामने होगा। दोस्तों अपने अंदर की ताकत को बढ़ाने में लगे रहना, गलतियों से सीखना, दुबारा वही गलती नहीं करना और देखना कारवां बनता चला जाएगा, सपने सच होते चले जाएंगे।

नशा, पॉर्न जैसे बुरी चीजों की लत –

कई बार हम तात्कालिक सुख के चक्कर में दूर तक नहीं देख पाते। हम बेहोशी का जीवन जी रहे होते हैं, हमारा जीवन बदहाल हुआ रहता है और आध्यात्म जैसी चीजों से हम दूर भागते हैं यही कारण है की हम तरह-तरह के नशे, पॉर्न और गलत चीजों में जकड़ जाते हैं और हमारा अमूल्य समय और ऊर्जा व्यर्थ होता रहता है।

साथियों हमें जरूरत है अपने जीवन जीने के नजरिए को बदलने का। हमें खुद को जानने समझने में समय लगाना चाहिए। हमें देहभाव से ऊपर उठ कर आत्मा के स्तर पर जाने का प्रयास करना चाहिए। अगर हम ऐसा कर पाते हैं तो होशपूर्ण जीवन जी पाएंगे तब इन गलत चीजों की जरूरत नहीं पड़ेगी। अध्यात्म तो अपनाना पड़ेगा क्योंकि अध्यात्म सही के चुनाव का साहस देता है, हमें होशपूर्ण जीवन जीने को प्रेरित करता है। साथियों ऊँचा लक्ष्य बनाइये और उसको पूरा करने का जी तोड़ प्रयास कीजिए। हमारे जीवन में समय सीमित है और कार्य बहुत ज़्यादा करने हैं तो वैसे भी आपको गलत कार्य करने की फुरसत ही नहीं रहेगी तो आप अनुपयुक्त चीजों से अपने आप दूर होते जाएंगे।

साथियों अगर हम उपर्युक्त बातों को ध्यान में रखकर आगे बढ़ेंगे और उनको अमल में लाएंगे तो अवश्य ही हम अपने अपने स्तर पर सकारात्मक परिवर्तन कर पाएंगे और देश को आगे बढ़ाने में अपना योगदान दे पाएंगे।

धन्यवाद